Jyoti Kumari motivational story bihari girl - 1200 km cycle chlane vali ladki

दोस्तो जब भी आपको लगे कि आप मुश्किल में है, आपको लगे कि आप नही कर सकते , मुसीबते आप के दरवाजे पे खड़ी हो, तो में कहता हूं भगवान को भले ही मत याद करना , एक बार ज्योति कुमारी की तस्वीर अपनी आंखों के सामने ले आना उसकी ये तस्वीर आपके से कहेगी |
अगर में कर सकती हूं तो आप भी कर सकते है। 

Jyoti Kumari motivational story - 1200 km cycle chlane vali ladki
Jyoti Kumari motivational story 

Jyoti kumari motivational story - जयोति कुमारी बिहार (दरभंगा) की लड़की


दोस्तो सिर्फ 15 साल की ज्योति कुमारी बिहार के दरभंगा में रहने है।  ज्योति के पिता गुरुग्राम में रिक्शा चलाते थे। वहां एक दुर्घटना में वो चोटिल हो गए थे। ज्योति अपनी मां और जीजा के साथ गुरुग्राम आई थीं। इसके बाद वो पिता की देखभाल के लिए वहीं रुक गईं। इसी बीच coronavirus के कारण लॉकडाउन हो गया। पिता का काम ठप्प पड़ा था। मकान मालिक कमरा खाली करवा रहा था , ज्योति ने 500 रू में साईकल खरीदी जो उसे प्रधानमंत्री जनधन से मिले थे, ओर पिता को कहा में आपको साइकल से घर ले जाऊंगी,
उनके पिता ने कहा बेटा नही होगा तुमसे बहुत दूर है , लेकिन उसने कहा नही पपा में आपको ले जाऊंगी।

उसने पता था कि उसने पहले अपने गांव में साईकल चलाया था, हो सकता है वो अपने स्कूल से घर तक साइकल से आती जाती हो, उससे ज्यादा नही,
उसने अपनी सहेली को भी साइकिल में बिठाया होगा , किसी बड़े आदमी को नही, और उसे लगा कि अगर अपनी सहेली बिठा सकती हूं तो मैं अपने पिता को भी साइकिल पर बैठा कर ले जा सकती हूं।

आगर में ओर आप होते तो शायद ऐसा करने की सोचते भी नही, oye तेरा दिमाग खराब हो गया है, 



ज्योति निकल पड़ी, 1200 km का सफर, न कुछ साथ खाने को, छोटी लेडी साइकल, पीछे बैठे हुए बीमार भारी भरकम पिता खुद पतली सी कमजोर-----

बस रास्ते मे जो कुछ मिला वो खा लिया, रात को भी साइकल चलाई दिन में भी साइकल चलाई। ओर मुसीबतों को चीरती हुई 8वे दिन अपने घर आ पहुची। ओर दुनिया को ये कहावत सच कर दिखाई --

हवाओं से कह दो अपनी औकात में रहे,
हम परों से नहीं होसलों से उड़ा करते हैं !


अगर ज्योति सोचती की बीमार पिता है में कैसे ले जाऊंगी, अगर रास्ते मे कुछ हो गया तो में क्या करूँगी,
इतनी दूर में साइकल कैसे चलाऊंगी, लेकिन वो कामयाब पता क्यों हुई, क्योंकि उसके अपना लक्ष्य सोच लिया था, उसका निशाना सिर्फ अपने लक्ष्य पर था, कि उसे अपने बीमार पिता को अपने घर लेकर जाना है बस ,
अगर वो मुश्किलो के बारे में सोचती तो शायद कभी घर से ही निकल न पाती ।

अपने को परिस्थितियों का ग़ुलाम कभी न समझो ।
तुम स्वयं अपने भाग्य के विधाता हो ।


तो अगर आपने भी अपना लक्ष्य सोच लिया है, तो शुरू हो जाओ, ओर वादा करो अपने आप से जितनी भी मुसीबते आये जीवन मे, जब तक मंजिल को पा नही लूंगा, में भी तब तक रुकूँगा नही । 



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